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क़दम-क़दम पे जिस्मों के अधूरे इश्क़ - कामिनी मोहन के (शे'र) (फेमस शायरी)

Kamini MohanKamini Mohan May 26, 2022
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1.
बदल गया है अब जमाना सिर्फ़ शब्द गूँजते हैं
क़दम-क़दम पे जिस्मों के अधूरे इश्क़ घूमते हैं।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

2.
हम फ़िक्रमंद हुए बदलती फ़ज़ाओं को देखकर,
ज़ेहन के मौसम नहीं बदलते अदाओं को देखकर।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

3.
बड़ी-बड़ी योजना, बड़ी-बड़ी बातें
सियासतों के मंसूबे बड़ी-बड़ी घातें।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

4.
मुख़्तलिफ़ अफ़्साने का निशाँ रह जाएगा,
मेरे बग़ैर तुम्हारे हिस्से सिर्फ़ क्लेश रह जाएगा।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

5.
गीली रेत पर ज्यों बचे हो फेनिल अवशेष
ज़िंदगी की जीवटता में देखे प्राणशेष
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

6.
झगड़े हो तो बच्चों का खेल निकले,
लड़ाई का नतीजा बच्चों का मेल निकले।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

7.
उसकी याद सिरहाने आई है
अपनी ख़ता याद आई है।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

8.
जैसे-जैसे टिप-टिप संगीत बजता
वैसे-वैसे धरती का आंचल भरता।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

9.
हारे हुए मन में प्रेम सपने भरेगा
थकेगा नहीं जीवन अमर करेगा।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय

10.
किसे मालूम था इश्क़ की दास्ताँ बनेगी
ये आँखों ही आँखों में अफ़्साने बयाँ करेगी
- © कामिनी मोहन पाण्डेय

11.
लेखन आत्म को गले लगाने का प्यार है
लेखन आत्माभिव्यक्ति का संसार है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय

12.
कई दिन फ़ाक़ा मस्ती में बीते देह गल गया होगा,
सब कहते हैं उसने ख़ुद को नया कर लिया होगा।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

13.
देह घर में यादों का बिल्लोर बर्फ़ निकला।
ज़ेहन पर उदासी का सर्द मौसम निकलना।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

14.
जो चला वो पहुँचा समय के द्वार
जो रुका उसने किया हर क्षण बेकार।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

15
मासूमियत से जब उठने लगी जहाँ की निगाह हमारी तरफ़
हमने भी निगाह-ए-मोहब्बत पर ख़ामोश ज़ेहन की
लाचारगी रख दी।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

16.
ग़म के बादल छाये हैं किसी के आँसू भरे हैं इनमें
रहमतों की धूप खिले तो ये बादल बरसे।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

17.
हे ईश्वर! अगर कुछ कर सको तो बस इतना करना
तुम्हें क़सम है 'मोहन' की हर तमन्ना पूरी करना।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय

18.
ठान ले जो कर गुज़रे पीछे हट जाते नहीं।
हो विपदा सामने खड़ी पर घबराते नहीं।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय

19.
जब कोई बच्चा मुस्कुराता है
उसमें अपना शबाब देखता हूँ।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय

20.
सूने सावन में बादल गर्जन देखा मैंने,
पाज़ेब की धुन पर पत्तों का नर्तन देखा मैंने।
-© का

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