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प्रेम शून्य से शुरू शून्य की यात्रा है
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
और रेगिस्तान सागर में।
बर्फ़ पानी में और पानी बर्फ़ में।
हम एहसास के ख़ज़ाने हैं
अभाव से दूर
सदैव भरे रहते हैं।
वसंत की पहली कली के जैसे
सदा निर्दोष, बेदाग
प्रेममय प्रस्फुटन से धड़कते हुए
निश्छल, निर्विकल्प, निर्विशेष
अद्भुत, अद्वितीय पर अद्वैत।
अलग होकर भी
हमेशा, हमेशा, हमेशा
बिल्कुल एक ही रहते हैं।
अद्भुत, अद्वितीय पर अद्वैत।
हमेशा, हमेशा, हमेशा
बिल्कुल एक ही रहते हैं।
इसीलिए प्रेम-साहित्य कहता है कि मुस्कुराहट और आँसू समान होने चाहिए। दोनों किसी एक विशेष भावना तक सीमित नहीं है। जब ख़ुश हो तो रो सकते हैं, और जब दुखी हो तो मुस्कुरा सकते हैं।
प्रेम में अंतर्विरोध नहीं होता, यह सदैव समर्पण और सहअस्तित्व को स्वीकार करता है। प्रेम से प्रेरित जीवन ही बेहतर जीवन है। यह हर सुख का आधार है। जीवन को सुंदर और अर्थपूर्ण बनाने के लिए केवल ईश्वर पर आस्थावान होना पर्याप्त है। ईश्वर के प्रति आस्था का अर्थ नियम में बंधना बिल्कुल नहीं है। जीवन कर्म को अनुशासित समर्पित होकर करते हुए ईश्वर के प्रति हर घड़ी आस्थावान हुआ जा सकता है।
प्रेम के संप्रेषण में रूह की साझेदारी हो तो प्रेम प्रत्येक रूह तक पहुँचती है।— चाहे रूह को धारण करने वाला जीव कोई भी क्यों न हो। चूँकि जीवन में मिले कर्तव्यों को ईमानदारी पूर्वक निभाते जाना ही धर्म है, इसीलिए इस धर्म कार्य में सत्य, सरल और प्रेम पूर्ण गुण हमारी आस्था को मज़बूत करते जाते हैं। हम अपने कर्म में उपजे प्रेम से ईश्वर के नज़दीक पहुँचते जाते हैं। कर्तव्य कर्म में समर्पित आस्था हमें जीवन का उद्देश्य बताते जाते हैं। इस उद्देश्य से हम अपने जीवन के लक्ष्य परम ईश्वर से योग को प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।
प्रेम शून्य से शुरू शून्य की यात्रा है। इतना सरपट इतना सरल कि हमारा सांसारिक गणित का गुणा-भाग, योग-संयोग सब इसी सड़क पर गतिमान रहते हुए अनंत की यात्रा करके पूर्ण होते हैं।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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