" निरस्त्र देह " - कामिनी मोहन's image
Poetry1 min read

" निरस्त्र देह " - कामिनी मोहन

Kamini MohanKamini Mohan April 25, 2022
Share0 Bookmarks 47906 Reads1 Likes
" निरस्त्र देह "

है कामना चलायमान रहने की
इसलिए निरस्त्र होते कर्मेन्द्रियों मेंं,
बचे हुए अस्त्र को टटोलते हैं।
देना चाहते हैं अबाधित यात्रा,
तय रूट पर ताक़त झोंकते हैं।

बताने को कुछ भी नहीं,
पर कितना कुछ बोलते हैं।
वक़्त के साथ निरंतर सिकुड़ कर
ख़राब हो रहे अंगों-प्रत्यंगों को
ठीक करने को अनगिनत दवाओं संग,
प्रार्थना को हाथ जोड़ते हैं।

घटते ज्ञानेन्द्रियों के बावजूद,
संकेतों को समझकर चलते हैं।
जीवन में पारंगत होकर <

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts