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ख़िज़ाँ में खिलती कली
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
ख़यालों को हकीक़त का
अल्फ़ाज़ पहनाने दो,
कम हो या ज़्यादा
कोरे काग़ज़ पर लिख जाने दो
रहगुज़र की थकन
मिटाने दो।
ख़िज़ाँ में खिलती कली को
मुस्कुराने दो,
उसके क़दमों के आगे से
हर काँटे को हटाने दो।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
-काव्यस्यात्मा
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
ख़यालों को हकीक़त का
अल्फ़ाज़ पहनाने दो,
कम हो या ज़्यादा
कोरे काग़ज़ पर लिख जाने दो
रहगुज़र की थकन
मिटाने दो।
ख़िज़ाँ में खिलती कली को
मुस्कुराने दो,
उसके क़दमों के आगे से
हर काँटे को हटाने दो।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय
-काव्यस्यात्मा
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