
Share0 Bookmarks 0 Reads1 Likes
कवियों को पसंद है
भाषा की आत्मा बन जाना
भीड़तंत्र से अलग
भीड़ का आलोचक बन जाना
शब्दों को ध्वनित कर
देह से रक्त में उतर जाना।
अपने कर्म की गतिमानता के लिए
चाहते बस थोड़ी-बहुत तारीफ़
क्योंकि उन्हें है भरोसा
वो कर सकेंगे बदलाव।
उन्हें खटकता रहता है
अकर्तव्य, अन्याय और अत्याचार
जिस तरह हर क्षण
बदल रहा है सबकुछ
रफ़्ता रफ़्ता ही सही
ऊँचा नीचा
ग़लत सही
भाषा की आत्मा बन जाना
भीड़तंत्र से अलग
भीड़ का आलोचक बन जाना
शब्दों को ध्वनित कर
देह से रक्त में उतर जाना।
अपने कर्म की गतिमानता के लिए
चाहते बस थोड़ी-बहुत तारीफ़
क्योंकि उन्हें है भरोसा
वो कर सकेंगे बदलाव।
उन्हें खटकता रहता है
अकर्तव्य, अन्याय और अत्याचार
जिस तरह हर क्षण
बदल रहा है सबकुछ
रफ़्ता रफ़्ता ही सही
ऊँचा नीचा
ग़लत सही
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments