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जो कुछ भी
सही है
जो कुछ भी
ग़लत है।
सब हमारे विचारों की
गफ़लत है।
देह की चाहत,
सिर्फ़ झलक है।
अपूर्णता में,
पूर्णता की ललक है।
माँग कर अधूरापन,
पूरा नहीं होता है।
रिश्ता निर्विकल्प हो तो,
अधूरा नहीं होता है।
ज़ेहन पर लिखे को,
मिटाना मुश्किल है।
हाथ से गिरे शब्द को,
उठाना मुश्किल है।
उद्विग्न स्वीकारता की झिझक,
कुँआर की चमचमाती धूप है।
उज्ज्वल सह
सही है
जो कुछ भी
ग़लत है।
सब हमारे विचारों की
गफ़लत है।
देह की चाहत,
सिर्फ़ झलक है।
अपूर्णता में,
पूर्णता की ललक है।
माँग कर अधूरापन,
पूरा नहीं होता है।
रिश्ता निर्विकल्प हो तो,
अधूरा नहीं होता है।
ज़ेहन पर लिखे को,
मिटाना मुश्किल है।
हाथ से गिरे शब्द को,
उठाना मुश्किल है।
उद्विग्न स्वीकारता की झिझक,
कुँआर की चमचमाती धूप है।
उज्ज्वल सह
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