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जो कुछ भी
सही है
जो कुछ भी
ग़लत है।
सब हमारे विचारों की
गफ़लत है।
देह की चाहत,
सिर्फ़ झलक है।
अपूर्णता में,
पूर्णता की ललक है।
माँग कर अधूरापन,
पूरा नहीं होता है।
रिश्ता निर्विकल्प हो तो,
अधूरा नहीं होता है।
ज़ेहन पर लिखे को,
मिटाना मुश्किल है।
हाथ से गिरे शब्द को,
उठाना मुश्किल है।
उद्विग्न स्वीकारता की झिझक,
कुँआर की चमचमाती धूप है।
उज्ज्वल सहज छायाएँ,
जीवन में प्रियतर स्वरुप है।
यहाँ अभिनव उँड़ेलता हुआ,
आत्म नित अपलक है।
देखो तो चिन्मय सघन,
कविता की दुआ सदा अपलक है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ:
गफ़लत: भूल-चूक, असावधानी, बे-ख़बरी।
अपलक : बिना पलक झपकाए, एकटक।
निर्विकल्प: सदा एक रस-एक रूप, निश्चल, स्थिर।
उद्विग्न : चिंतित, परेशान।
अभिनव : बिल्कुल नया , नवीन।
चिन्मय : पूर्ण विशुद्ध ज्ञानमय ईश्वर।
सही है
जो कुछ भी
ग़लत है।
सब हमारे विचारों की
गफ़लत है।
देह की चाहत,
सिर्फ़ झलक है।
अपूर्णता में,
पूर्णता की ललक है।
माँग कर अधूरापन,
पूरा नहीं होता है।
रिश्ता निर्विकल्प हो तो,
अधूरा नहीं होता है।
ज़ेहन पर लिखे को,
मिटाना मुश्किल है।
हाथ से गिरे शब्द को,
उठाना मुश्किल है।
उद्विग्न स्वीकारता की झिझक,
कुँआर की चमचमाती धूप है।
उज्ज्वल सहज छायाएँ,
जीवन में प्रियतर स्वरुप है।
यहाँ अभिनव उँड़ेलता हुआ,
आत्म नित अपलक है।
देखो तो चिन्मय सघन,
कविता की दुआ सदा अपलक है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ:
गफ़लत: भूल-चूक, असावधानी, बे-ख़बरी।
अपलक : बिना पलक झपकाए, एकटक।
निर्विकल्प: सदा एक रस-एक रूप, निश्चल, स्थिर।
उद्विग्न : चिंतित, परेशान।
अभिनव : बिल्कुल नया , नवीन।
चिन्मय : पूर्ण विशुद्ध ज्ञानमय ईश्वर।
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