231. कामिनी मोहन के दोहे
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231. कामिनी मोहन के दोहे "दोहा"

Kamini MohanKamini Mohan March 10, 2023
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देखो   यारो   रेल   को,   जैसे   भागे   साँप 
आफत टली जान बची, हम तो गए थे काँप।।1।। 

चढ़ते  सूरज  की  धूप, कोई  रोक  न  पाता।
नित बदलते जीवन को, कोई समझ न पाता।।2।। 

देह  घर  के  कमरे  में,  हवाओं  की थपकी
ज़ेहन की दीवार पर, उम्मीद की खिड़की।।3।। 

जूनून  की  चाहत  में, राह  धड़कता साज़
बे-ख़ौफ़ राही सुनता, धड़कन की आवाज़।।4।। 

रात अंधेरी हो भले, रख जोश परवाने 
भोर  तो  होगी  देखो, तम हटा दीवाने।।5।।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
-काव्यस्यात्मा

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