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देखो यारो रेल को, जैसे भागे साँप
आफत टली जान बची, हम तो गए थे काँप।।1।।
चढ़ते सूरज की धूप, कोई रोक न पाता।
नित बदलते जीवन को, कोई समझ न पाता।।2।।
देह घर के कमरे में,&nb
आफत टली जान बची, हम तो गए थे काँप।।1।।
चढ़ते सूरज की धूप, कोई रोक न पाता।
नित बदलते जीवन को, कोई समझ न पाता।।2।।
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