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कभी आगे कभी पीछे भागते हुए,
शब्दों से घिरी कविता पकड़ लेगी।
रचते हुए अनगिनत को गिनते हुए,
हर बार कविता अकड़ लेगी।
तारीफ़ शब्दों की कभी कड़वी,
कभी मीठी चासनी में घोल लेगी।
प्रतियोगिता है हृदय के बीच
प्रेम और नफ़रत के हिस्से को चुन लेगी।
कभी सख़्ती से कभी नरमी से,
शक करने पर बिगड़ लेगी।
जब अध्यक्षता करते शब्द बोलेंगे,
तो सूखी कविताई की सब्ज़ा झड़ लेगी।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दों से घिरी कविता पकड़ लेगी।
रचते हुए अनगिनत को गिनते हुए,
हर बार कविता अकड़ लेगी।
तारीफ़ शब्दों की कभी कड़वी,
कभी मीठी चासनी में घोल लेगी।
प्रतियोगिता है हृदय के बीच
प्रेम और नफ़रत के हिस्से को चुन लेगी।
कभी सख़्ती से कभी नरमी से,
शक करने पर बिगड़ लेगी।
जब अध्यक्षता करते शब्द बोलेंगे,
तो सूखी कविताई की सब्ज़ा झड़ लेगी।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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