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जो वक़्त से आगे हैं
एक दिन विगत का होगा।
तो, जिसे अतीत में देखा
उसे सपना कहकर कैसे विस्मृत कर दे?
नहीं कर सकते तो
अंतरदृष्टि से निगाह कैसे फेर ले
वक़्त की गणना में
सत्य का ठहरना
कैसे सिलसिलेवार संस्मृत कर दे?
जो बीत चुका है
वह अतीत के नैतिक दृश्य को थामे
आगे-आगे चलता रहता है
लेकिन, वक़्त के शिलालेख पर समय की दृष्टि है।
जो सत्य सदियों पहले उद्घाटित हुआ
एक दिन विगत का होगा।
तो, जिसे अतीत में देखा
उसे सपना कहकर कैसे विस्मृत कर दे?
नहीं कर सकते तो
अंतरदृष्टि से निगाह कैसे फेर ले
वक़्त की गणना में
सत्य का ठहरना
कैसे सिलसिलेवार संस्मृत कर दे?
जो बीत चुका है
वह अतीत के नैतिक दृश्य को थामे
आगे-आगे चलता रहता है
लेकिन, वक़्त के शिलालेख पर समय की दृष्टि है।
जो सत्य सदियों पहले उद्घाटित हुआ
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