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जो वक़्त से आगे हैं
एक दिन विगत का होगा।
तो, जिसे अतीत में देखा
उसे सपना कहकर कैसे विस्मृत कर दे?
नहीं कर सकते तो
अंतरदृष्टि से निगाह कैसे फेर ले
वक़्त की गणना में
सत्य का ठहरना
कैसे सिलसिलेवार संस्मृत कर दे?
जो बीत चुका है
वह अतीत के नैतिक दृश्य को थामे
आगे-आगे चलता रहता है
लेकिन, वक़्त के शिलालेख पर समय की दृष्टि है।
जो सत्य सदियों पहले उद्घाटित हुआ
वह वर्तमान मनुष्य में व्याप्त सत्य की आकृष्टि है।
इसीलिए,
आगे बढ़ती ऐतिहासिकता
वर्तमान मनुष्य के अर्जित सत्य के सामने छोटा
लेकिन ख़ुद से सृजित सत्य के अनुभव का ऐतिहासिक परिवार है।
भविष्य गढ़ता हुआ मनुष्य
कहीं न कहीं अतीत में उपजे
लेकिन ठहरे हुए
सत्य बोध में घुलता बार-बार है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ-
संस्मृत: स्मरण किया हुआ।
एक दिन विगत का होगा।
तो, जिसे अतीत में देखा
उसे सपना कहकर कैसे विस्मृत कर दे?
नहीं कर सकते तो
अंतरदृष्टि से निगाह कैसे फेर ले
वक़्त की गणना में
सत्य का ठहरना
कैसे सिलसिलेवार संस्मृत कर दे?
जो बीत चुका है
वह अतीत के नैतिक दृश्य को थामे
आगे-आगे चलता रहता है
लेकिन, वक़्त के शिलालेख पर समय की दृष्टि है।
जो सत्य सदियों पहले उद्घाटित हुआ
वह वर्तमान मनुष्य में व्याप्त सत्य की आकृष्टि है।
इसीलिए,
आगे बढ़ती ऐतिहासिकता
वर्तमान मनुष्य के अर्जित सत्य के सामने छोटा
लेकिन ख़ुद से सृजित सत्य के अनुभव का ऐतिहासिक परिवार है।
भविष्य गढ़ता हुआ मनुष्य
कहीं न कहीं अतीत में उपजे
लेकिन ठहरे हुए
सत्य बोध में घुलता बार-बार है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ-
संस्मृत: स्मरण किया हुआ।
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