174. जीतना नहीं आया
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174. जीतना नहीं आया - कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan September 29, 2022
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सब देखते
सुनते
समझते
कुछ उष्म
कुछ सुगंध समेटकर
अचानक से एक दिन
बिना कुछ कहे
सब छोड़कर चल दिए थे।

तुम नहीं मरते
पर जिस देह में रहकर
तुम उमगते थे
सत्-रज्-तम् के प्रवाह में घुलकर
कर्म के मोती चुनते थे।

करते थे
दस प्राण-सात चक्र पर नियंत्रण 
श्वास में घुलकर नाड़ियों में
विचरण करते थे
देह चाहे थक जाए
पर तुम नहीं थकते थे।

जो जीवन गीत हृदय ने बुने थे
जो गीत छुपकर तुमने सुने थे

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