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कौवे से आलस्य रहित
भंवरे से रस ग्राही सहित।
हंस-सा नीर-क्षीर विवेकी
शरीर से हर क्षण नेकी।
मृग - सा चौकन्ना रहो
सर्प फण - सा स्वरक्षी।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय
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