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हर सप्ताह
है आता इतवार
पर सुकून।
प्रेम शून्य है
पर गणित नहीं
समझे कैसे।
सोच-सोच के
सुकून नहीं आता
क्यूँ सोचते?
चित्त की वृत्ति
ये सत् रज् तम्
निर्गुण बने।
बैठे हैं द्वार।
है आता इतवार
पर सुकून।
प्रेम शून्य है
पर गणित नहीं
समझे कैसे।
सोच-सोच के
सुकून नहीं आता
क्यूँ सोचते?
चित्त की वृत्ति
ये सत् रज् तम्
निर्गुण बने।
बैठे हैं द्वार।
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