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धर्म के हैं चार स्तम्भ
कर्तव्य, कर्म, ईमानदारी और निर्वाहन।
क़ाएल नहीं है सभी चारों स्तम्भों के
ज़ेहन पर स्वार्थ का भार भारी हैं।
यथार्थ तो यही है
धर्
कर्तव्य, कर्म, ईमानदारी और निर्वाहन।
क़ाएल नहीं है सभी चारों स्तम्भों के
ज़ेहन पर स्वार्थ का भार भारी हैं।
यथार्थ तो यही है
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