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दयानिधान से मिले रंग
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
ज़िंदगी हमारे बारे में
हमसे ज़्यादा जानती हैं।
कला, संस्कृति, सभ्यता और प्रेमी को
अच्छे से पहचानती है।
पत्थरों के जैसे देह पर न दिखाई देने वाले
चित्र उत्कीर्ण रहते हैं
भ्रम, संदेह, दुविधा, किन्तु, परन्तु
अक्सर तभी मिटते हैं
जब दीवारों के चेहरे बोलते हैं।
जहाँ कम है रोशनी
वहाँ मनुष्यता को
तर्क तराज़ू पर तौलते हैं।
यदि फ़र्क़ सिर्फ़ ज़ेहन के सुविधाजनक होने का है
तो दयानिधान से मिले रंग को
आँखों से देह में उतरने देते हैं।
हम ताका करते हैं
रंग-बिरंगे पक्षी, कीट-पतंगों को
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