
Share0 Bookmarks 0 Reads1 Likes
बड़ी बेचैनी है,
देह घर में।
बड़ी उदासी है,
अंतस् मन में।
ऐसे जैसे गले की,
आवाज़ पर बर्फ़ पड़ी।
साँसों की सरसराहट,
मंद पड़ी।
फिर भी जुनूँ,
जोश मारता जाता है।
रुकता नहीं,
चलता जाता है।
मंज़िल तक,
पहुँचना चाहता है।
रास्तों के पार,
जाना चाहता है।
सबकी ख़ुशी की ख़ातिर
हर गाँठ को खोलना चाहता है।
जब तक है कंचन काया,
सबको जोड़ना चाहता है।
देह घर में।
बड़ी उदासी है,
अंतस् मन में।
ऐसे जैसे गले की,
आवाज़ पर बर्फ़ पड़ी।
साँसों की सरसराहट,
मंद पड़ी।
फिर भी जुनूँ,
जोश मारता जाता है।
रुकता नहीं,
चलता जाता है।
मंज़िल तक,
पहुँचना चाहता है।
रास्तों के पार,
जाना चाहता है।
सबकी ख़ुशी की ख़ातिर
हर गाँठ को खोलना चाहता है।
जब तक है कंचन काया,
सबको जोड़ना चाहता है।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments