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बड़ी बेचैनी है,
देह घर में।
बड़ी उदासी है,
अंतस् मन में।
ऐसे जैसे गले की,
आवाज़ पर बर्फ़ पड़ी।
साँसों की सरसराहट,
मंद पड़ी।
फिर भी जुनूँ,
जोश मारता जाता है।
रुकता नहीं,
चलता जाता
देह घर में।
बड़ी उदासी है,
अंतस् मन में।
ऐसे जैसे गले की,
आवाज़ पर बर्फ़ पड़ी।
साँसों की सरसराहट,
मंद पड़ी।
फिर भी जुनूँ,
जोश मारता जाता है।
रुकता नहीं,
चलता जाता
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