245.अव्यक्त भावनाएँ 
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245.अव्यक्त भावनाएँ  - कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan April 21, 2023
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परिणामों से बेख़बर 
आश्चर्यचकित करता हुआ 
ज़्यादातर दिनों में 
टूटे-फूटे अक्षरों से शुरू होकर
बेमेल स्नेह और संघर्ष का परिणाम लिए हुए 
अनियंत्रित पर 
पहला और आख़िरी पुनर्निर्माण करते हुए 
भीतर ही भीतर सृजित होते हुए 
सारा जादू भाषा पर निर्भर है। 

एक ज़िंदा निरंकुश कल्पना
स्वयं के प्रतिबंधों से
दमन को दरकिनार करते हुए 
एक सम्मोहक छवि 
और कुछ विचार पकड़े हुए 
नहीं पड़ता कोई फ़र्क 
अनिश्चितता से 
इसका प्रेम असीम-अनंत निर्झर है। 

टूटता भी नहीं 
जुड़ता भी नहीं
अलग होकर भी 
अलग होता नहीं
न तो समेटा जा सकता है 
न तो गिनती कर किसी को दिया जा सकता है
इसका हाथों में आना दुर्भर है। 

क्योंकि अव्यक्त भावनाएँ मरती नहीं
भले ही उन्हें ज़िंदा दफ़्न कर दिया जाए
कविता आत्म को अलग करती नहीं
चाहे सारा अनुभव 
भाषा पर छोड़ दिया जाए
गति और गतिमान की नींव 
हर हाल में रहती देहम्भर है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।

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