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इस संसार में
इच्छा के संबंध में
पक्षपात और लोभ के प्रबंध में
आनंद और नाराज़गी के द्वंद्व में
क्रोध, झूठ और संदेह के जन्म में
सब कुछ है अभिप्रेत
तो फिर दुश्मन कौन है।
सत्य जो मुक्त है
जिनसे आकाशीय प्रतिबिंब निखरते हैं
कभी न खत्म होने वाले घेरे में
हमको घेर रहते हैं
गहराईं है मनोगत या कुछ और
अंतहीन पुनर्जन्म की पीड़ा में
आशाओं के अलग हुए बादल गिनते हैं।
यह कठिन है तो
फिर बहुत आसान क्या है
ज्ञान, ज्ञान और दूरदर्शिता का प्रवाह
या अवचेतन में
पानी की बूँदों का संघनित निर्वाह
मूल्यवान क्या है
जो विश्वास के योग्य है,
या जो स्पर्श के प्रयोज्य है।
चलो सब भूल जाए
और असहनीय को सहनीय कर जाए
वह स्थान जहाँ कुछ भी नष्ट न हो
दिन के अंत में
वहाँ ध्यान केंद्रित करते जाए
क्या अलग हो जाए
और क्या जुड़ जाए
नहीं रखते इसका कोई ध्यान
जैसे-जैसे सब असुविधाजनक होते जाए
आत्म-अवशोषित से सुविधापूर्ण होते जाए
ताकि ख़ुद से परे
और एक अकल्पनीय गहराई में
एक दूसरे का हाथ थामने का साहस मिल जाए।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
इच्छा के संबंध में
पक्षपात और लोभ के प्रबंध में
आनंद और नाराज़गी के द्वंद्व में
क्रोध, झूठ और संदेह के जन्म में
सब कुछ है अभिप्रेत
तो फिर दुश्मन कौन है।
सत्य जो मुक्त है
जिनसे आकाशीय प्रतिबिंब निखरते हैं
कभी न खत्म होने वाले घेरे में
हमको घेर रहते हैं
गहराईं है मनोगत या कुछ और
अंतहीन पुनर्जन्म की पीड़ा में
आशाओं के अलग हुए बादल गिनते हैं।
यह कठिन है तो
फिर बहुत आसान क्या है
ज्ञान, ज्ञान और दूरदर्शिता का प्रवाह
या अवचेतन में
पानी की बूँदों का संघनित निर्वाह
मूल्यवान क्या है
जो विश्वास के योग्य है,
या जो स्पर्श के प्रयोज्य है।
चलो सब भूल जाए
और असहनीय को सहनीय कर जाए
वह स्थान जहाँ कुछ भी नष्ट न हो
दिन के अंत में
वहाँ ध्यान केंद्रित करते जाए
क्या अलग हो जाए
और क्या जुड़ जाए
नहीं रखते इसका कोई ध्यान
जैसे-जैसे सब असुविधाजनक होते जाए
आत्म-अवशोषित से सुविधापूर्ण होते जाए
ताकि ख़ुद से परे
और एक अकल्पनीय गहराई में
एक दूसरे का हाथ थामने का साहस मिल जाए।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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