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आगे जो बदलने वाला है,
और जो धीरे-धीरे बदल गया है।
हर कारण, हर आशा को,
पूरा जीवन परखता गया है।
सपने जो मैंने देखे,
भविष्य ने उसे क़ैद किया।
संरेखित वास्तविकता में,
संरेखण का अनुभव किया।
दुख-ताप की शोकसंतप्त छाया में,
जब सब कुछ टूट कर बिखर गया।
उस समय, समय नहीं टूटा,
उसने सब देखा और सब निगल गया।
हम उतना ही जीते हैं,
जितना अतीत में मर जाते हैं।
निःशेष से अतिशेष लेकर,
अमरता की ओर जाते हैं।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
और जो धीरे-धीरे बदल गया है।
हर कारण, हर आशा को,
पूरा जीवन परखता गया है।
सपने जो मैंने देखे,
भविष्य ने उसे क़ैद किया।
संरेखित वास्तविकता में,
संरेखण का अनुभव किया।
दुख-ताप की शोकसंतप्त छाया में,
जब सब कुछ टूट कर बिखर गया।
उस समय, समय नहीं टूटा,
उसने सब देखा और सब निगल गया।
हम उतना ही जीते हैं,
जितना अतीत में मर जाते हैं।
निःशेष से अतिशेष लेकर,
अमरता की ओर जाते हैं।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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