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एक ही तरह की रात में
गर्म फीके आसमान में
आभा से उभरे हुए प्रतिबिंब में
सबको मौखिक रूप से निगलने वाले उपहार देना
धुंधली रेखा के सामने बाहरी और भीतरी
जहाँ हर दो बात के बाद होती है तीसरी बात
वहाँ ब्रह्माण्डीय शांति के प्रवाह की घात हेरना
है कई घंटों गहरे केवल समाधि की बात फेरना।
भीतर से घिरी हुई
त्रिविमीय अस्तित्व के आश्चर्य का लालित्य
और ज्ञान से परे बुद्धि का पाण्डित्य।
है बस सपनों को पूरा करने के लिए सपने देखना
झूठ में छुपे हुए सच को देखना
है ज्ञान से परे ज्ञान को बोलने देना।
गुमराह करती हुई नक्काशियों की
निराधार विश्वास से परे के निशान देखना,
गुंजायमान करती हुई
खींचतान कर एक आभा मण्डल बनाना
अनसुनी भीतर से सड़ी हुई
सोच की जंजीरे थामे हुए
केवल चेतना का द्रव्यमान देखना
है घाव के धब्बे में समर को खोजना।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
गर्म फीके आसमान में
आभा से उभरे हुए प्रतिबिंब में
सबको मौखिक रूप से निगलने वाले उपहार देना
धुंधली रेखा के सामने बाहरी और भीतरी
जहाँ हर दो बात के बाद होती है तीसरी बात
वहाँ ब्रह्माण्डीय शांति के प्रवाह की घात हेरना
है कई घंटों गहरे केवल समाधि की बात फेरना।
भीतर से घिरी हुई
त्रिविमीय अस्तित्व के आश्चर्य का लालित्य
और ज्ञान से परे बुद्धि का पाण्डित्य।
है बस सपनों को पूरा करने के लिए सपने देखना
झूठ में छुपे हुए सच को देखना
है ज्ञान से परे ज्ञान को बोलने देना।
गुमराह करती हुई नक्काशियों की
निराधार विश्वास से परे के निशान देखना,
गुंजायमान करती हुई
खींचतान कर एक आभा मण्डल बनाना
अनसुनी भीतर से सड़ी हुई
सोच की जंजीरे थामे हुए
केवल चेतना का द्रव्यमान देखना
है घाव के धब्बे में समर को खोजना।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
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