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अंतिम से आरंभ किया
" गूँजे हर पल "
गूँजे हर पल भौंरों के गीत
गीत के सुर में गुम हुई धूप
धूप से मिलती कलियों की नज़रे
नज़रे निरखती सतरंगी रुप
रुप चुराते ओस की बूँद
बूँद से अंबर ने ओढ़ी दुशाला
दुशाला ओढ़ धरती ने पहनी माला
माला पहन बहे प्रेम की सरिता
सरिता में अविरल नेह की कविता
कविता पर छायी वसंती रीत
रीत में ऊमन्ती मोहन के गीत
-© कामिनी मोहन ।
" गूँजे हर पल "
गूँजे हर पल भौंरों के गीत
गीत के सुर में गुम हुई धूप
धूप से मिलती कलियों की नज़रे
नज़रे निरखती सतरंगी रुप
रुप चुराते ओस की बूँद
बूँद से अंबर ने ओढ़ी दुशाला
दुशाला ओढ़ धरती ने पहनी माला
माला पहन बहे प्रेम की सरिता
सरिता में अविरल नेह की कविता
कविता पर छायी वसंती रीत
रीत में ऊमन्ती मोहन के गीत
-© कामिनी मोहन ।
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