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218.चले गए तुम सब भूल के - कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan February 7, 2023
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चले गए तुम सब भूल के,
हुए मन के श्रृंगार सब धूल के।
है सामने खिल रहा अलबेला वसंत
चुभ रहे वेदना के काँटे बबूल के।

जीवन गति कंपायमान पर चलते हैं।
धरा और आकाश भी चलते हैं ।
बदलता मानस महामण्डल में कहाँ ठहरेगा?
हैं जो आत्म देह को बाँधे वे भी चलते हैं।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।

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