215.मैं आऊँगा
- © कामिनी मोहन।'s image
Poetry1 min read

215.मैं आऊँगा - © कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan February 4, 2023
Share0 Bookmarks 104 Reads1 Likes
जब हवाओं में सुगन्धि टूटेंगी,
आम्र तरुओं में बौर लाऊँगा।
तुम्हारी कंचन काया पर,
धूप-सा खिल जाऊँगा। 

तरुओं की शाखाओं पर,
मखमली पत्ते सजाऊँगा।
कंपकंपाती टहनियों पर,
पीताम्बर सजाऊँगा। 

ऋतुएं बदलेगी,
मैं अल्हड़ आऊँगा।
धरा पर प्राण फूंकने को,
मैं नवरंग लेकर आऊँगा। 

तुम राह देखना,
मैं वसंत बन खिल जाऊँगा।
धुली-धुली चाँदनी में,
वंशी फिर बजाऊँगा।

मैं राधेश्वर बन नरम कोपलों पर,
अंकुर बन मुस्काऊँगा।
अल्हड़ प्रिये तुझ संग मैं
रास-रंग रचाने फिर-फिर आऊँगा।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts