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जब हवाओं में सुगन्धि टूटेंगी,
आम्र तरुओं में बौर लाऊँगा।
तुम्हारी कंचन काया पर,
धूप-सा खिल जाऊँगा।
तरुओं की शाखाओं पर,
मखमली पत्ते सजाऊँगा।
कंपकंपाती टहनियों पर,
पीताम्बर सजाऊँगा।
ऋतुएं बदलेगी,
मैं अल्हड़ आऊँगा।
धरा पर प्राण फूंकने को,
मैं नवरंग लेकर आऊँगा।
तुम राह देखना,
मैं वसंत बन खिल जाऊँगा।
धुली-धुली चाँदनी में,
वंशी फिर बजाऊँगा।
मैं राधेश्वर बन नरम कोपलों पर,
अंकुर बन मुस्काऊँगा।
अल्हड़ प्रिये तुझ संग मैं
रास-रंग रचाने फिर-फिर आऊँगा।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
आम्र तरुओं में बौर लाऊँगा।
तुम्हारी कंचन काया पर,
धूप-सा खिल जाऊँगा।
तरुओं की शाखाओं पर,
मखमली पत्ते सजाऊँगा।
कंपकंपाती टहनियों पर,
पीताम्बर सजाऊँगा।
ऋतुएं बदलेगी,
मैं अल्हड़ आऊँगा।
धरा पर प्राण फूंकने को,
मैं नवरंग लेकर आऊँगा।
तुम राह देखना,
मैं वसंत बन खिल जाऊँगा।
धुली-धुली चाँदनी में,
वंशी फिर बजाऊँगा।
मैं राधेश्वर बन नरम कोपलों पर,
अंकुर बन मुस्काऊँगा।
अल्हड़ प्रिये तुझ संग मैं
रास-रंग रचाने फिर-फिर आऊँगा।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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