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नहीं, नहीं बस और नहीं
कविता की भाषा पर गौर नहीं।
कविता के धरातल का
चाहे हो कोई ठौर नहीं,
पर कवि और उसकी कविता
कभी इधर या कभी उधर नहीं।
शब्द ही हैं जो बोल रहे हैं
शब्द ही मौन तोड़ रहे हैं
मानस के पंख खोल रहे हैं।
-© कामिनी मोहन।
कविता की भाषा पर गौर नहीं।
कविता के धरातल का
चाहे हो कोई ठौर नहीं,
पर कवि और उसकी कविता
कभी इधर या कभी उधर नहीं।
शब्द ही हैं जो बोल रहे हैं
शब्द ही मौन तोड़ रहे हैं
मानस के पंख खोल रहे हैं।
-© कामिनी मोहन।
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