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गाता है चुपचाप सुमधुर गीत
प्रेमी अपनी ही धड़कन का।
गुनगुनाता है प्रेरित प्रेम
नव उपवन की सुगंध का।
ज्यों-ज्यों परछाईं आगे बढती है
अपना चेहरा छुपा-छुपाकर।
त्यों-त्यों गतिमान उजाला आगे बढ़ता है
अपनी छवि दिखा-दिखाकर।
प्रेम बिना अंधेरे
बिना उजाले के रच-बसकर।
बुनियाद
अंतस् में है स्थिर धंस-धंसकर।
कितना दुखी है <
प्रेमी अपनी ही धड़कन का।
गुनगुनाता है प्रेरित प्रेम
नव उपवन की सुगंध का।
ज्यों-ज्यों परछाईं आगे बढती है
अपना चेहरा छुपा-छुपाकर।
त्यों-त्यों गतिमान उजाला आगे बढ़ता है
अपनी छवि दिखा-दिखाकर।
प्रेम बिना अंधेरे
बिना उजाले के रच-बसकर।
बुनियाद
अंतस् में है स्थिर धंस-धंसकर।
कितना दुखी है <
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