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182. क़दम-क़दम - कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan October 13, 2022
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जिस समय में हम जीते हैं,
उसका असर क्या है?

सारी परिपाटियां है उलझी हुई
तो फिर सरल क्या है?

जीवन सत्य चीज़ है!
तो उसका रुप क्या है?

परिणाम है मंज़िल अगर पहुँच गए
तो विस्तार का रास्ता कहाँ है?

जानता हूँ वक़्त से तेज़
ले जाना है क़दम।
कोमल पाँव चाहे हो फटे,
सुर-ओ-ताल मिलाना है
क़दम क़दम।

प्रेम का प्रश्न हाथ में लेकर
प्रेम के मीटर पर ह

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