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हर देह पर खिलता है रोशनी का जादू
ठहरकर चमकता फिर जाता कहाँ है?
अँधेरा-उजाला आ आकर, जा जाकर
दिन-रात का पहर ले जाता कहाँ है?
काग़ज़ पर लिखकर संवाद पहुँचाते हुए
जिन रास्तों ने उठाया-गिराया कहाँ है?
मिट्टी से लिपटकर मिट्टी कमाते हुए
जो साथ जाए वो अपना-पराया कहाँ है?
फ़लसफ़े सुनाते लफ़्ज़ आसमां तक हैं जाते
नय्या है नज़र के सामने पर हवा के इशारे कहाँ
ठहरकर चमकता फिर जाता कहाँ है?
अँधेरा-उजाला आ आकर, जा जाकर
दिन-रात का पहर ले जाता कहाँ है?
काग़ज़ पर लिखकर संवाद पहुँचाते हुए
जिन रास्तों ने उठाया-गिराया कहाँ है?
मिट्टी से लिपटकर मिट्टी कमाते हुए
जो साथ जाए वो अपना-पराया कहाँ है?
फ़लसफ़े सुनाते लफ़्ज़ आसमां तक हैं जाते
नय्या है नज़र के सामने पर हवा के इशारे कहाँ
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