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न चाहा कभी भी कि क़िस्तों में देखूँ
धारावाहिक-सी ज़िंदगी के घटते वजूद को।
सरख़ुशी बस इतनी सिर्फ़ इनायत की नज़र देखूँ
धारावाहिक-सी ज़िंदगी के घटते वजूद को।
सरख़ुशी बस इतनी सिर्फ़ इनायत की नज़र देखूँ
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