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सुनो..मैं बहुत अकेला हूँ..जीने के लिए तुम्हारा दर्द चाहिए..तुम्हारे सारे आँसू सब तकलीफ़ें चाहिए..

एक रूखा सा 'हैलो' भी साँस चला देता था..माथे की सिकवन से दिल काम चला लेता था..
तुम मुझे ना देखो पर मुझे फिर तुम्हारी एक झलक चाहिए..तुम पलकें तो उठाओ,डूबने के लिए दो नहर चाहिए..

अब मिटना चाहता हूँ,हर दर्द मिटाना चाहता हूँ..तुम झूठा ग़ुस्सा करो,मुस्कुराना चाहता हूँ..
तुम्हारी गालियों में फिर पैदल ही आना चाहता हूँ..तुम्हें छत पे मैं लाके 'ईद' करना चाहता हूँ..

मुझे ना प्यार चाहिए ना अब इज़हार चाहिए..तुम्हारा साथ और साथ का एहसास चाहिए..

कोई भी दोस्त ना बनाया ना ही प्यार किया..साँस के चलने तक तुम्हारा इंतज़ार किया..अब कोई साथ नहीं देता तुम ही आ जाओ..लो हमने प्यार छोड़ दोस्ती का इज़हार किया..

मुझे लिखने के लिए अब तुम्हारा हाथ चाहिए..दिन में इक बार सही पर तुमसे बात चाहिए..

लेखक-कमल शुक्ला
09454471844

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