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हर पथ पर मुड़ा हूं...तुम्हारे लिए
हर दर पर झुका हूं...तुम्हारे लिए
लहर नदियां यूं ही चलती रही..
हवाएं भी रूख बदलती रही..
ना झुका कभी बवंडर के उफान से
ना रुका कभी उठते हुए तूफ़ान से
हर मुश्किलों से लड़ा हूं... तुम्हारे लिए
हर लहरों से टकराया हूं... तुम्हारे लिए
जीत कर भी कहां मैं जीत पाया हूँ
हँस कर भी कहां मैं मुस्करा पाया हूँ
मिल कर तुमसे कहां मैं मिल पाया हूँ
जुदा होकर तुमसे कहां मैं बिछड़ पाया हूँ
चेहरे कई हसीं थे समक्ष मेरे..
आंखो में एक भी समा ना पाया..
फिर भी एक चेहरे पर अड़ा हूं... तुम्हारे लिए
लोट आओगी आस लिए खड़ा हूं... तुम्हारे लिए
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