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आज़ फ़िर फ़ूलों से गुफ़्तगू हुई है,
वहाँ तेरी खुश्बू की ज़ुस्तज़ु हुई है।
भूलना है तुम्हारी फितरत में मग़र,
आज फिर दिल को तुम्हारी आरजू हुई है।।
एक अरसा हुआ तुमसे कोई बात नही हुई है,
तब से आंखे ना नम हो ऐसी कोई रात नही हुई है।
तेरी यादों के मौसम ने भिगोया है सदा मुझे,
फिर यह बेमतलब की क्यो बरसात हुई है।।
तुम से जब कोई मुलाकात हुई है,
आंखों से आंखों की कोई बात हुई है।
फ़ासला जो रहा दरमियाँ हमारे,
दूरी उसी की अब मुझे ज्ञात हुई है।
कश्मकश सी ज़िन्दगी से जब प्रीत हुई है,
कांटो,पत्थरों, लहरों से तब मीत हुई है।
संघर्षों के इस मुश्किलों भरे सफ़र में,
जो चला है यकीनन उसी की जीत हुई है।।
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