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माँ की साडी में महक भीनी भीनी सी जैसी माँ सी
हर सिलवट में सालों से संजोये हुए कूछ कूछ उसके प्यार जैसी।
पीली गुलाबी हरियाली सी हर रंग के भावों से खिल खिलाती
उसकी डांट, झूठमुठ का गुस्सा और सागर सा प्यार मुझपे लहराती।
आँचल के कोने में न जाने कैसा जादू बाँधे रखती
धूप को छनती, फुहारों को टोकती और ठंडी बयार को अप
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