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वो दुनिया से रूठी सी पागल सी लड़की,
बहुत चोट खाई सी घायल सी लड़की,
ज़बाँ में कहीं कोई लज़्ज़त नहीं है,
किसी की नज़र में भी इज़्ज़त नहीं है,
हैं तूफाँ ज़हन में और होंठों पर चुप्पी,
बिना घुंघरू के एक पायल सी लड़की।
न है कोई साथी न हि संग कोई,
वो है बावली सी न है ढंग कोई,
वो अपना पराया न कुछ जानती है,
जो मिले प्यार से अपना ही मानती है
बरसें जो आँखें तो सावन सी लड़की,
वो बाबा के प्यारे से आँगन सी लड़की।
बहुत चोट खाई सी घायल सी लड़की
वो दुनिया से रूठी सी पागल सी लड़की।
-ज्योति सत्यम्
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