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हाथों में था जो फूल महक दे गया है क्या
सूरज वो आँखों को चमक दे गया है क्या।
किनारों पे आज कैसा ये सन्नाटा पसरा है
तूफान कोई कश्तियाँ डुबो गया है क्या।
आप ऐसे क्यूँ दीवाने से फिरते हैं
अजीज़ कुछ या कि कोई खो गया है क्या।
सारे तारे आज ज़मीं पर हैं किसलिए
क्या आसमां ज़मीं पे आकर सो गया है क्या।
-ज्योति सत्यम्
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