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नारी है एक रूप है अनेक
देखना चाहे उसे उतना देख
किसी के लिए है वो प्रेमिका
तो किसी के लिए माँ होती है
तू कुलदेवी कुल की रक्षक कुल की गौरव है
निरादर इसका इस धरती पर रौरव है
कहीं पर बन गई यह काली
तो कही पर बनी यह दुर्गा
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