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मुश्किलों से हारना
हमें नहीं आता
कोई कितना भी रोके
रूक जाना हमे नहीं आता ।
लोग कोशिश करना छोड़ देते है
अपनी मंजिल को पाने के लिये
पर बिना मंजिल को पाए
रूक जाना हमे नही आता ।
मंजिल भी उसकी थी
रास्ता भी उसका था
एक मैं ही अकेला था
बाकि सारा काफ़िला भी उसी का था ।
एक साथ चलने की सोच
भी उसकी थी
और बाद में रास्ता बदलने
का फैसला भी उसी का था ।
ना किसी से कोई ईर्ष्या है
ना किसी से कोई होड़ है
मेरी अपनी मंजिल है
और मेरी अपनी दौड़ है ।
मिट्टी का तन है
दिन रात क्या सजाना
मिट्टी ही मंजिल है
तन पर क्या इतराना ।
कोशिश के बावजूद
हो जाती है कभी हार
होकर निराश मत बैठना
ऐ मेरे यार ।
बढ़ते रहना आगे ही
जैसे भी मौसम हो
आखिर पा लेती है
मंजिल चींटी भी
गिर गिर कर कई बार ।
- जीतेन्द्र मीना ' गुरदह '
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