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साथ चल दी ' जिम्मेदारियां '
जब घर से निकला ,
मकसद कुछ और था
पर मंजिल !
मंजिल कहीं और थी !
घर का वो शब्द ' जिम्मेदारियां '
मकसद तक नहीं पहुंचने देता !
सपने कुछ और थे
मगर जिम्मेदारियों का रास्ता
वहां नहीं पहुंचता !
भटका दिया रास्ते में
जिम्मेदारियों ने ,
फस गया वो मासूम
जिम्मेदारी और मकसद के बीच ।
© जीतेन्द्र मीना
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