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वो छोटी सी बगियाँ
महक रही थी अकेली
मानों कोई गम न था
उसकी जिन्दगी में
प्रकृति ने
पाल पोसकर खूब
संजोयाँ उसे
लग रहा था मानों
स्वर्ग की सैर पर आया हूँ
मन बड़ा
आनंदित , प्रफुल्लित था
वो प्रकृति की
अकाट्य , अद्भुत सुन्दरता
रम गया मै
भूल सा गया खुद को
उसकी खुशबू ,
उसकी सुन्दरता मैं
लाल पीले ,
वो रंग बिरंगे फूल
खुशियाँ बिखेर रहे थे
उसकी लहर देखकर
दंग सा रह गया
अचानक जो पहुँचा वहाँ
नीला आसमां
तेज लिये हुए
अपनें गहनों में था
बडा मनभावन दृश्य था
शान्त , एकान्त
पानी कल कल ,
चिडियाँ गाना गा रही थी
जीवन का मजा था वो
शान्त , एकान्त
अकेलेपन में खुशियाँ
क्या पल थे वो ?
© जीतेन्द्र मीना ' गुरदह '
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