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रचना: अमृत है हर बूँद
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बूँद एक टपकी गगन से ।
बूँद एक टपकी नयन से ।।
बूँद का हर रूप मानव,
को परिष्कृत कर गया।।
बूँद गिरती जब सुमन पे ।
बूँद गिरती जब तपन पे ।।
बूँद का प्रारूप प्रकृति को,
सुसज्जित कर गया ।।
बूँद की भर के अँजूरी ।
बूँद हर पल है
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बूँद एक टपकी गगन से ।
बूँद एक टपकी नयन से ।।
बूँद का हर रूप मानव,
को परिष्कृत कर गया।।
बूँद गिरती जब सुमन पे ।
बूँद गिरती जब तपन पे ।।
बूँद का प्रारूप प्रकृति को,
सुसज्जित कर गया ।।
बूँद की भर के अँजूरी ।
बूँद हर पल है
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