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तुम और तुम्हारी ज़ुल्फ़ें❣️
बिखरी हुई कभी ये लहराती बनके रेशम धागे ज्यों,
भीगी भीगी तो लागे किसी सर्द सुबह में शबनम ज्यों,
कितने नख़रे, कितनी अदायें, कितनी नादानियाँ ,
कितना कुछ छुपा इनमें ही,
तुम्हारी सादगी, तुम्हारी चंचलता, तुम्हारी ख़ूबसूरती,
सब बतलाती तुम इनसे ही,
कभी इन ज़ुल्फ़ों को कसकर बाँध ग़ुस्सा भी दिखलाती हो,
तो कभी बिखेर इन्हें, बाहों में अपनी समेट No posts
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