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क़ाश एक भोर ऐसी हो अब
आँखे खुले तो लगे हो गया सही सब,
जिससे डरे थे यहाँ से चला गया वो अब,
चमके सबका सूरज फैले फिर से उजियारा
खिले दुनियां का चमन गायब हो जाये अँधियारा,
गुलाम हो गये जो हुआ करते थे कभी बेबाक
वैसे गुनाहगार तो सब ही है भले इरादे ना रहे नापाक,
सीख लेंगे हम इससे कुछ तो नयी
कभी ना दोहराएंगे गलतियाँ जो हुई,
समझेंगे सबको बराबर, मानेंगे सबको बड़ा
शायद फिर ना करना पड़े जो था अभी जबरन करना पड़ा,
सांसे थमी चंद पर सुकून प्रकृति ने पाया है
बहुत कुछ खोके इंसानियत को फिर से जीना आया है,
क़ाश एक भोर ऐसी हो अबआँखे खुले तो लगे हो गया सही सब!!!
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