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कैसे करूँ शुक्रिया अदा सुकुन जो तुम दे गये हो,
वाकिफ़ तो नहीं पर एक एहसान जरुर कर गये हो,
मौका मिला तो लौटाऊंगा एक दिन हंसने की वजह
फिलहाल तो उजड़ी हुई ख्वाबों की दुनिया फिर से बसा गये हो तुम!
पर सच कहुं तो,
ख़ामोशी के सन्नाटे में गुंजता एक शोर हो तुम,
उलझे बेपरवाही के मांझे की सुलझी एक डोर हो तुम,
अनंत अथाह गहरे दरिया का एक छोर हो तुम,
समझ न आये तो कोई और,
गर जान जाये कोई तो भाव विभोर हो तुम,
नाउम्मीदी में उम्मीद का एक ख्याल हो तुम,
बेझिझक मन में उठता एक सवाल हो तुम,
यु बेवजह नहीं, वजह हर बार हो तुम,
मेरे होने का एहसास तुमसे न होने का भ्रम हो तुम,
खुली आँखों ने जो देखा सपना तो साकार हो तुम,
मेरी हार का हिस्सा नहीं पर हर जीत का सार हो तुम!!!
:- जितेंद्र सिंह सम्पत
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