एक सोच जिसका ना कोई आइना था,'s image
hindi pakhwadaPoetry1 min read

एक सोच जिसका ना कोई आइना था,

Jitendra SinghJitendra Singh March 9, 2022
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एक सोच को पकड़ कर मैं कुछ इस क़दर बैठा रहा,

सही ग़लत का पता नहीं बस उसे सोचता सिता रहा,

सोच सोच के ख़्यालों में विचारो को मैं बुनता रहा,

और सही ग़लत में हर बार मैं ग़लत को ही चुनता रहा,

ये ग़लतफ़हमी ही थी की सब कुछ ग़लत ही था,

सारी रात इसी जंग को मैं फ़िज़ुल, बेबस लड़ता रहा !!


सुबह का सु

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