
तु उदास बैठा क्यूँ है, चल कुछ गीत पुराने गाते है,
जो छुट गया है बीच राह साथ उसे भी लाते है,
जाने अनजाने देखे उन ख्वाबों को मुक़म्मल अब कर आते है,
इस रंग-बिरंगी दुनियाँ में छाप नयी छोड़ आते है,
चल आज फिर खुद को खुद से ही मिलाते है!!
होंसला अब भी तुझमे उतना ही है, बस हिम्मत नयी जुटाते है,
मान लिया था जो तूने खुद को रूप तेरा वो दिखलाते है,
बैचेन सी बिख़री कुछ राहें मोड़ उन्हें नया दे आते है
सिमट रहे है जो ख्याल तेरे पंख सुनहरे उन्हें लगाते है
चल आज फिर खुद को खुद से ही मिलाते है!!
दुनिया की इस भीड़ में तन्हा क्यूँ खुद को रखता है,
गुमनामी के समंद्र में गुमराह क्यूँ ऐसे होता है,
मशाल तेरी अभी बुझी नहीं तो अँधेरे में क्यूँ सोता है,
धधक रही है ज्वाला जो उजियारा नया फैलाते है,
चल आज फिर खुद को खुद से ही मिलाते है!!
जज्बातों की बंधी नाजुक रेशमी सी एक डोर है,
एक दूजे से आगे निकल जाने की लगी होड़ है,
परेशां तू अकेला ही नहीं इस जहाँ में तेरे इरादे तुझे सताते है,
क्या सिर्फ जीके मरने आया यहाँ बस यही सवाल तुझे जगाते है,
चल उठ, आज फिर खुद को खुद से मिलाते है !!!!!
:-जीत राठौड़
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