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यूं जो मेरी कोशिशों को,

बड़ी खूबसूरती से नजरअंदाज कर देती हो।


अंजाने में ही सही,

मुझे और बेताब कर देती हो।


लिखता रहूं इशारों की कलम से मैं खत जितने भी,

तुम उन्हें पढ़े बिना ही जला के राख कर देती हो।


बड़ी सब्र से सुनता हूं तुम्हारी हर बात को,

पर मेरी बात आने पर जिससे बात पलट जाए ,तुम कोई ऐसी बात कर देती हो।


करता रहे कोइ इंतज़ार तुम्हारा,

तुम घर की खिड़की से बाहर झांकने में दिन से रात कर देती हो।

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