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कैसी होगी वो मिलन की शाम, जब होगी तू मेरे पास,
सूरज की बंद होती नजरों के सामने क्या मैं तुझे कह पाऊंगा कि क्या है तू मेरे लिए, क्या कुछ कह भी पाऊंगा या हो जाऊंगा हर बार की तरह चुप। कितनी तैयारी के साथ आता हूं मैं हर बार की कह दूंगा तुझे जो है दिल मे मेरे, पर जब तू मेरे सामने आती है तो मैं तुझ में ही खो जाता हूं, मेरा दिमाग चलना बंद हो जाता हैं, धड़कने तेज हो जाती है और ऐसा लगता है मानो कोई नहीं है हमारे आसपास, सिर्फ मैं हूं और तुम हो। मैं तेरा हाथ पकडना चाहता हूं, मैं तुझे छूना चाहता हूं, तुझे गले से लगा कर अपना बनाना चाहता हूं,पर डर है कहि इतना करीब ना आ जाऊं कि बिछड़ने पर मिलन की एक शाम भी नसीब ना हो।
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