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कहा पाए सुकून अपना किस शोर में गुनगुनाए हम,
मिज़ाज़ मिले जो किस्मत के ऐसे की कितनी लकीरे मिटाए हम,
ऐब ऐसे की ज़माने की नादानीयौ को भुला देते है,
जब खुद को ही कोसना ठहरा तो किस शिकवे को दरवाज़ा खटखटाए हम,
किताबो मे लिख दो
मिज़ाज़ मिले जो किस्मत के ऐसे की कितनी लकीरे मिटाए हम,
ऐब ऐसे की ज़माने की नादानीयौ को भुला देते है,
जब खुद को ही कोसना ठहरा तो किस शिकवे को दरवाज़ा खटखटाए हम,
किताबो मे लिख दो
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