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ज़िन्दगी झूल रही मौत की गोद मेँ,
आसमान बरस् रहा कैहैर बन्के हवाओं से,
अज़ीज़ो की खैरियत् मांगते दुआएं नहि थकती,
और तुम कैहते हो की मेरे हाथ कुछ् नही।
सांसो कि लङियां जो कुचली जा रही अपनों के आगे,
कायनात् जो बेबस रह गयी अपनी तख्लीक् के बचाने,
मौत जो ज़िन्दगी के सर से गुजर् रही हर लम्हा,
पर तुम कैहते हो मुआमला तुम्हारा नही।
जब आओगे उन्हि दर् ए अत्फालो पे जिनकी मासूमियत् से खेल् गये,
क्या दर्कार् कहोगे अपनी बे हय नज़रो से तुम्,
जिनके चराग् बुझे तुम्हारी नादानियों से,
और तुम कैहते हो कसूर तुम्हारा नही।
कितने भी सद्के कर लो इन् रूह ए शिकस्तां के आगे,
आसमान बरस् रहा कैहैर बन्के हवाओं से,
अज़ीज़ो की खैरियत् मांगते दुआएं नहि थकती,
और तुम कैहते हो की मेरे हाथ कुछ् नही।
सांसो कि लङियां जो कुचली जा रही अपनों के आगे,
कायनात् जो बेबस रह गयी अपनी तख्लीक् के बचाने,
मौत जो ज़िन्दगी के सर से गुजर् रही हर लम्हा,
पर तुम कैहते हो मुआमला तुम्हारा नही।
जब आओगे उन्हि दर् ए अत्फालो पे जिनकी मासूमियत् से खेल् गये,
क्या दर्कार् कहोगे अपनी बे हय नज़रो से तुम्,
जिनके चराग् बुझे तुम्हारी नादानियों से,
और तुम कैहते हो कसूर तुम्हारा नही।
कितने भी सद्के कर लो इन् रूह ए शिकस्तां के आगे,
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