
सपने सबके अपने-अपने ,
हम सपनों से बेगाने है।
जिस मिट्टी पर है जन्म लिए,
उस मिट्टी के परवाने है।
नहीं चाह हमें है अंबर की,
तन ढकते है दुनिया के लिए,
मुठ्ठी भर से मन भर जाता,
पर खटते हैं दुनिया के लिए,
थालि भर के सबके घर की,
रहते घर से बेगाने है,
सपने सबके अपने-अपने हम
परवाह नहीं है तुफां का,
खतरों से खेल ये सिखा है,
ये इश्क मोहब्बत ना जाने,
हर बगिया दिल से सींचा है,
सींचे है रिश्ते गांवों में,
हमें लगते शहर वीराने हैं,
सपने सबके अपने-अपने
हम सपनों से बेगाने है।।
धरती ये हमारी माता है,
फसलें उसके तन के गहने,
हरियाली जिसकी चादर है,
हर नदियां उसकी है बहने,
देखों ऋतुएं हर राग कहें,
सब आबो हवा तराने हैं,
सपने सबके अपने-अपने,
हम सपनों से बेगाने हैं से।।
मशगूल हैं रहते खेतों में,
दुनिया दारी हम क्या जाने,
है थके हुए उन पथिको सा,
बस राम राम कहना जाने,
ये माथ पच्ची कौन करें,
मंज़र अच्छे अंजाने है ।।
सपने सबके अपने-अपने,
हम सपनों से बेगाने हैं।।
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