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ये हम, कहां पर,चले आए यार,जहां नफरतों का लगा है बाजार।।
हैं बिवी से नफ़रत, सिधे घर में आवो, उधर कि न सुनो,इधर की सुनाओ, बनाओं बहाने वहां जाके कुछ भी, बताओं हुए हम भी अब दो से चार।। ये हम...
हैं मां कहती बेटे, वो तुमको पढ़ाती, वही तुम हो करते जो तुमको बतातीं, ये कहती इसि दौर से हूं मैं गूजरी, जहां पर खड़ा है,तेरा कारोबार।। ये हम...
कहती है बहनें, रहा वो न भाई, छुटी जब से राखी है आईं लुगाई ,कमाई है सारा लुटाते उसीपर, है फुर्सत कहां जो मिले एक बार।।ये हम...
करम में हैं नफ़रत धरम में हैं नफ़रत, जिधर मुड़ के देखूं है नफ़रत ही नफ़रत, है नफ़रत पे मंजर सभी का बसेरा, हैं नफ़रत के आगोश में संसार।। ये हम..
- जनमेजय ओझा 'मंजर'
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