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गृहस्थ मस्ताना

janmejay ojha " manjar"janmejay ojha " manjar" August 22, 2023
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न आंशिक हूं न आवारा न पागल हूं न दिवाना , 

है जन्नत गांव में अपनी लगें हर शाम सुहाना,

जहां पर प्रेम कि सरिता हरेक आंगन में बहती हैं,

उसी आंगन का अफसाना, हूं मैं गृहस्थ मस्ताना,

हूं मैं गृहस्थ मस्ताना, हूं मैं गृहस्थ मस्ताना।।

कभी सोहर कभी कजरी, कभी शहनाईयां बजती,

हरेक खेतों में फसलों की, कभी है क्यारियां सजती,

यहां होली दीवाली को सभी मिलकर मनाते हैं ,

खुशी से झूम कर गाते, हरे कृष्णा हरे रामा ,

हूं मैं गृहस्थ मस्ताना, हूं मैं गृहस्थ मस्ताना।।

न अम्बर सोच सकता हूं न धरती छोड़ सकता हूं,

जुड़ा हूं गाय गंगा से न मुख ये मोड़ सकता हूं,

जहां हर रिश्ते नाते को, बखूबी सब निभाते है,

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